स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँउमेश पाण्डे
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क्या आप जानते हैं कि सामान्य रूप से जानी वाली कई जड़ी बूटियों में कैसे-कैसे विशेष गुण छिपे हैं?
सफेद कटेली
सफेद कटेली के विभिन्न नाम :
संस्कृत में- कंटकारी, कण्टकारी, निदिग्धिका, दुःस्पर्शा, क्षुद्रा, हिन्दी में- कटाई, भटकतैया, कटैरी, कंडियारी, पंजाबी में- कंडियारी, मराठी में- भुईरिंगणी, गुजराती में- बेठी रिंगणी, भोटीं गडी, भोरिंगणी, भींयरिंगणी, बंगाली में- कण्टिकारी, अरबी में- बादंजानवरी (दश्ती), शौकतुल अकरब, फारसी में- बार्दगान बरी, कटाईखुर्द, अंग्रेजी में -Little solanum
लेटिन में - सोलानुम सूरात्तेंसे (Solanum surattense) or (S. indicum)
वानस्पतिक कुल-कण्टकारी-कुल (सोलानासी) (Solanaceae)
सफेद कटेली का संक्षिप्त परिचय
प्राय: समस्त भारतवर्ष में इसके स्वयं जात क्षुप पाये जाते हैं। सफेद कटेली के छोटे-छोटे कंटीले क्षुप होते हैं, जो छत्ते की भांति भूमि को अच्छादित कर फैले होते हैं। यह ऊँची एवं शुष्क भूमि में उत्पन्न होती है। नदी के किनारे यह बहुत खूब बढ़ती है। शीतकाल में यह संकुचित रहती है तथा गर्मी के दिनों में फूल-फल से सुशोभित होती है एवं बरसात का पानी पड़ते ही नष्ट होती जाती है। इसकी शाखाओं, पत्र, पत्रवृन्त एवं पुष्पवाहक दण्ड सभी पर प्रचुर मात्रा में तीखे-नुकीले कांटे होते हैं। सफेद कटेली का प्रधान काण्ड बहुत छोटा तथा काष्ठीय होता है और जड़ के पास से ही अनेक टेढ़ी-मेढ़ी शाखायें निकलकर चारों ओर भूमि पर छत्ते के समान फैलती हैं। इसकी जड़ प्राय: बहुवर्षीय स्वभाव की होती है। पत्तियां 5 से. मी. से 10 से.मी. लम्बी, रूपरेखा में देखने में बनगोभी की पत्तियों की तरह तथा दोनों पृष्ठों पर सूक्ष्म रोमों से युक्त होती है। मध्य शिरा एवं अन्य शिराओं पर पीले रंग के सीधे एवं नुकीले कांटें होते हैं। पत्रवृन्त 1 इंच लम्बे व रोमावृत्त पर पत्तों की भांति कटे होते हैं जो एकान्तर क्रम से स्थित होते हैं। फूल ताराकार के होते हैं। फल गोलाकार व्यास में डेढ़ से 2 से.मी., बड़ी रसभरी की आकृति का, चिकना तथा नीचे की ओर झुका हुआ होता है। अपक्रावस्था में यह हरा या सफेद या चितकबरे रंग का होता है। फल के गात्र पर सफेद धारियां पड़ी होती हैं। पकने पर यह पीला पड़ जाता है।
सफेद कटेलीका धार्मिक महत्त्व
अधिकांश वृक्षों एवं पौधों का कोई न कोई धार्मिक महत्व अवश्य होता है। सफेद कटेली का भी धार्मिक रूप में काफी महत्व है। इसके अनेक उपायों के द्वारा स्त्रियों की संतान सम्बन्धी समस्याओं की समाप्ति होती है। इस कार्य के लिये इसकी जड़ का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। ऐसा देखने में आता है कि इन प्रयोगों को जिसने भी पूरी आस्था एवं विश्वास से प्रयोग किया है, उसे फल की प्राप्ति भी पर्यात रूप से हुई है। इसके अनेक प्रयोग हैं किन्तु यहाँ पर संक्षित रूप से अत्यन्त चमत्कारिक माने जाने वाले प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है:-
>यह उपाय उन स्त्रियों के लये अत्यन्त लाभदायक है जिनके एक संतान होने के पश्चात् दूसरी संतान नहीं होती है। इस प्रयोग से यह समस्या समाप्त होगी तथा स्त्री दूसरी संतान का सुख प्राप्त कर पाने में सफल होगी। गुरुपुष्य योग में पूर्व निमंत्रण देकर सफेद कटेली की मूल प्राप्त कर लें।जिस दिन आपने जड़ प्राप्त करनी है, उसके एक दिन पूर्व पौधे के समक्ष जायें। अपने साथ एक लोटा स्वच्छ जल, कुछ पीले रंग में रंगे चावल तथा अगरबत्ती ले जायें। चावल को हल्दी अथवा केसर से रंग लें। पौधे के समक्ष जाकर पहले हाथ जोड़ कर प्रणाम करें। जल अर्पित करें। तत्पश्चात् जड़ पर पीले चावल बिखेर कर अगरबत्ती लगायें। फिर पुनः आँखें बंद कर मानसिक रूप से निवेदन करें कि मैं कल पूर्ति अवश्य करें। इसके पश्चात् वापिस चले जायें। दूसरे दिन प्रात: पौधे के पास जायें और जल अर्पित करें। तत्पश्चात् किसी लकड़ी की सहायता से जड़ को खोद कर प्राप्त करें और अपने इष्ट का मानसिक स्मरण करते हुये वापिस आ जायें। इस मूल को ऐसी स्त्री की कमर में काले डोरे से बांधे, जो काकबन्ध्या हो। काकबन्ध्या उन स्वियों को कहते हैं जिनकी एक संतान होने के बाद अन्य संतान नहीं होती है। ऐसा करने से काकबन्ध्यता नष्ट होती है। इसमें यह ध्यान रखें कि अगर स्वयं वह महिला, जिसे इसका प्रयोग करना है, इस जड़ को लेकर आये तो अधिक उत्तम रहेगा। महिला के साथ उसका पति भी जाये किन्तु जड़ प्राप्त करने की समस्त विधि महिला ही करे। इसमें एक और विशेष बात की तरफ ध्यान दें। महिला जब जड़ प्राप्त कर रही हो तो वह दूसरी संतान के रूप में कन्या की कामना करे। संतान प्राप्ति की जब भी बात आती है तो अक्सर पुत्र की ही कामना की जाती है। यहाँ पर संतान के अवरोध को समाप्त करने की स्थिति है, इसीलिये कन्या की कामना करने से महिला की यह कामना शीघ्र पूर्ण हो जाती है। इसका गूढ़ भाव यह है कि किसी भी अवरोध को समाप्त करने के लिये हमें जिस शक्ति की आवश्यकता होती है, अगर हम इसके लिये उसी शक्ति का आह्वान करें तो कामना की पूर्ति शीघ्र हो जाती है। कन्या शक्ति का ही अंश है। इसलिये यह उपाय शीघ्र फलीभूत होता है।
> गर्भ सुरक्षा में कटेली की जड़ का चमत्कारिक प्रभाव देखने में आता है। कई बार स्वी का गर्भ बार-बार गिर जाता है अथवा गर्भकाल में अनेक प्रकार की समस्यायें सामने आने लगती हैं। जो स्त्रियां इस प्रकार की समस्याओं से पीड़ित हैं, उन्हें यह प्रयोग अवश्य ही करना चाहिये। रविपुष्य योग में सफेद कटेली की मूल प्राप्त कर लें। विधि वही है जो पहले कही गई है। इस मूल के टुकड़े को ताबीज में बंद करके लाल रंग के रेशमी डोरे से गर्भवती स्त्री अपनी कमर में बांध ले। ऐसा करने से उसका गर्भ रक्षित रहता है, गिरता नहीं है और समय पर वह स्वस्थ बालक को जन्म देती है।
> इस जड़ का प्रयोग दुर्घटना से मुक्ति के लिये भी किया जाता है। अनेक ऐसे व्यक्ति हैं जिनके द्वारा पूरी सावधानी से वाहन चलाने के उपरांत भी दुर्घटना हो जाती है। इसमें अक्सर वाहन को काफी क्षति पहुँचती है। चालक को भी कभी-कभी चोट आदि का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिये सफेद कटेली की जड़ का प्रयोग करना अत्यन्त फलदायी सिद्ध होता है। गुरुपुष्य अथवा रविपुष्य योग में श्वेत कटेली की मूल को उपरोक्त विधि अनुसार खोदकर ले आयें। इस मूल को कर्पूर की धूनी देकर वाहन में ड्राइवर के पास रखने अथवा लटकाने से वह वाहन दुर्घटनाग्रसित नहीं होता है।
> उपरोक्त मूल को घर के मुख्यद्वार पर लटकाने से उस घर पर किसी की नज़र नहीं लगती है तथा उस घर की सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
> सफेद कटेली पर नित्य जल अर्पित करने वाला तथा उसके पास नित्य अगरबत्ती लगाने वाला व्यक्ति हमेशा शत्रुओं से रक्षित रहता है।
> शुभ मुहूर्त में निकाली गई सफेद कटेली की मूल को जो व्यक्ति अपने पास है उसके शत्रु उसके समक्ष टिक नहीं पाते।
कटेली का ज्योतिषीय महत्त्व
जो व्यक्ति शनिवार के दिन घी और कपूर मिलाकर सफेद कटेली के फलों का हवन करता है, वह केतु के कुप्रभाव से मुक्त होता है।
कटेली का वास्तु में महत्त्व
वास्तु की दृष्टि से किसी भी भवन की सीमा में कांटों वाले पौधों का लगाना शुभ नहीं माना जाता है किन्तु सफेद कटेली इसका अपवाद है। सफेद कटेली का पौधा घर में होने से अत्यन्त शुभ प्रभाव प्राप्त होता है। अवांछित समस्यायें पास नहीं आती हैं और जो भी कार्य किया जाता है, उसमें शुभत्व की वृद्धि होती है।
कटेली का औषधीय महत्त्व
इसका अनेक रोगों में प्रयोग किया जाता है। मूल रूप से इसके पत्तों तथा जड़ का प्रयोग अधिक किया जाता है। अनेक रोगों में इसके पंचांग का उपयोग भी किया जाता है। इसके कुछ औषधीय प्रयोग इस प्रकार हैं:-
> आमवात रोग में इसके पत्तों को पीसकर लेप करने से लाभ होता है।
> गले की सूजन में इसके पत्तों का स्वरस 1-1 चम्मच दिन में 2 बार पिलाने से बहुत लाभ होता है।
> इसके पंचांग का क्राथ पीने से कब्ज की शिकायत नहीं होती है, पेट साफ रहता है। यह काढ़ा आप रात को सोने से पूर्व पीयें। काढ़ा पीने के पश्चात् कुछ खाना-पीना नहीं है।
> इसके पंचांग का काढ़ा बनाकर उससे गरारे करने से टॉन्सिल्स तुरन्त बैठ जाते हैं। गरारे करते समय काढ़ा मुँह में जितनी देर रोक सकें, उतना रोकने का प्रयास करें। यह काढ़ा हल्का गर्म ही होना चाहिये।
> इसके पंचांग के काढ़े में आंवले का रस मिलाकर पीने से सब प्रकार की खाँसी ठीक होती है।
> कटेली की मूल एवं हींग को 2 : 1 अनुपात में लेकर उसको भली प्रकार पीस लें। इस चूर्ण की अल्प मात्रा को शहद में मिलाकर चाटने से श्वास रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।
> इसके पंचांग के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से कई प्रकार के मूत्र रोग ठीक हो जाते हैं। काढ़े की अधिक गर्म स्थिति में शहद नहीं मिलायें। जब काढ़ा हल्का गर्म रह जाये, तभी शहद मिलायें और धीरे-धीरे घूंट भरत हुये सेवन करें।
> दाँत में जब कीड़ा लग जाता है तो उसमें काफी पीड़ा होने लगती है। कीड़े के कारण उत्पन्न तीव्र दंत पीड़ा में इसके फल का रस लगाने से शीघ्र ही दर्द में आराम प्राप्त होता है।
> पथरी रोग में इसकी मूल का चूर्ण तथा बृहती मूल का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर दही के साथ देने से लाभ होता है। चूर्ण की एक चम्मच मात्रा दी जाती है।
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- उपयोगी हैं - वृक्ष एवं पौधे
- जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां
- जड़ी-बूटियों से संबंधित आवश्यक जानकारियां
- तुलसी
- गुलाब
- काली मिर्च
- आंवला
- ब्राह्मी
- जामुन
- सूरजमुखी
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- अपराजिता
- कचनार
- गेंदा
- निर्मली
- गोरख मुण्डी
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- लाजवंती
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- ईश्वरमूल
- कनक चम्पा
- भोजपत्र
- सफेद कटेली
- सेमल
- केतक (केवड़ा)
- गरुड़ वृक्ष
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- बिछु्आ
- रसौंत अथवा दारु हल्दी
- जंगली झाऊ